मेहंदी और फूल__
एक आंगन मे दो नन्हे जीवन रहते थे
बचपन से संग
अलग अलग अंदाज है फिर भी रंगे थे
एक ही रंग
इक नाजुक कली थी प्यारी,कांटो में
था उसका संसार
कभी सावन कभी पतझड़ में, करती
थी वो श्रृंगार
ये मेहंदी के बूटे ऐसे, पत्ता पत्ता निखरा हो
जैसे
खुद का रंग हाथो मे भर दी,पत्थर पर वो
बिखरा ऐसे
एक हाथ कई हाथों में लगी,रंग आंसू
कभी रंग खुशी
फूलों की किस्मत में थे कांटे,मिली सिर्फ
उसे दो पल की हंसी
हर मौसम हर लम्हा बिताया,साथ एक ही
आंगन में
थी रौनक जब साथ थे दोनो, टूटे थे एक ही
आंचल में
कुदरत ने हमें एक ही अदा दी,कोमल सा
जिस्म बना दी
जालिम दुनिया पत्थर पे घिंसा,और फूलों
में आग लगा दी
हमको पता था इतनी हकीकत,टूट कर
फिर संवरना है इक दिन
फूल गले का हार बनेगा,पत्ती को हाथ पर
बिखरना है इक दिन
एक ही साथ हमें तोड़ा गया,एक ही
डाल में आए थे हम
अपने जख्मों की ना ही दवा थी,ना काम
आया कोई मरहम
मैं मेहंदी मेरा रंग है लाल,हर सुहागन के
हाथों में लगी मैं
मैं फूल थी, बहार की खुशबू,बर्बादी की
अब राह चली मैं
इक बेबस कली ने पूछा,सुन माली क्या
औकात हमारी
हम ही खुशी में गम में भी आगे,आखिर
क्या है जात हमारी
Writer_anuj_ojha _01