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नारी, धर्म व अधिकार

नारी, धर्म व अधिकार -
करिये इन पर विचार।
जैसे बेकार खट्टे अचार,
वैसे समाज के विकार।
नारी, धर्म व अधिकार -
जरूरी है मंथन, सबको अभिनंदन।
ईश्वर कहाँ है?
ईश्वर सर्वत्र है।
मंदिर में है,
मस्जिद में है,
मकबरे में भी है।
अतः मकबरे व मस्जिद का
पुनर्निर्माण जरूरी है।
सुनने में आया है -
हिन्दू खतरे में है
और मौत के करीब है।
कवि चन्द्रेश कहते हैं -
सुन लो दुनियावालों,
हिन्दू जाग गया है
और शौच कर रहा है।
कहीं गाय पवित्र है,
कहीं सुअर निषेध है।
आधी दुनिया खाती है,
पर धर्म के आगे
धार्मिक की मति मारी है।
धर्म हो न हो,
नारी पर सब भारी हैं।
कपड़े नहीं तो
नग्नता उसकी पहचान है।
कपड़ों व चिह्नों पर
धर्म भारी है।
मानो न मानो -
बुर्का व घूंघट
पर्यायवाची हैं।
मूल अधिकारों पर भी
धर्म भारी है।
कहीं स्त्री भ्रूण का
गर्भपात जरूरी है।
कहीं गर्भपात ही अपराध है।
बच्चा लाना न लाना -
निजी मामला नहीं,
पारिवारिक भी नहीं,
पूरे विश्व में चर्चा का विषय है।
सच है -
वंशज लानेवाली पर
दुनिया भारी है।