करती हु कोशिश खाली न बैठु
कुछ अजीब सा खालीपन
कुछ न कर पाने की विवशता
अपनों में परायेपन की चुभन
खुद के खोखलेपन का एहसास
करती हु कोशिश खाली न बैठु
खुद को काम में लगाए रखु
मरती हुई इच्छाओ को जगाये रखु
घनघोर अंधकार से भरा मन
उसमे छोटी सी आशा की लौ जलाये रखु
करती हु कोशिश खाली न बैठु
हजारो अजीबो गरीब ख्याल
अनगिनत अनकहे सवाल
उम्मीदों के बोझ तले झुकता कन्धा
कभी खुद की नज़रो में ही शर्मिंदा
करती हु कोशिश खाली न बैठु
बाहर से तो सब छलावा है
मुझे जान पाया कौन मेरे अलावा है
मुस्कराहट के पीछे छिपा अनकहा दर्द
तू कहा जान पाया ऐ मेरे हमदर्द
करती हु कोशिश खाली न बैठु