ankita awasthi

खाली न बैठु

करती हु कोशिश खाली न बैठु 

कुछ अजीब सा खालीपन 
कुछ न कर पाने की विवशता
अपनों में परायेपन की चुभन 
खुद के खोखलेपन का एहसास 
करती हु कोशिश खाली न बैठु 
खुद को काम में लगाए रखु
मरती हुई इच्छाओ को जगाये रखु 
घनघोर अंधकार से भरा मन 
उसमे छोटी सी आशा की लौ जलाये रखु 
करती हु कोशिश खाली न बैठु 
हजारो अजीबो गरीब ख्याल 
अनगिनत अनकहे सवाल 
उम्मीदों के बोझ तले झुकता कन्धा 
कभी खुद की नज़रो में ही शर्मिंदा 
करती हु कोशिश खाली न बैठु 
बाहर से तो सब छलावा है 
मुझे जान पाया कौन मेरे अलावा है 
मुस्कराहट के पीछे छिपा अनकहा दर्द 
तू कहा जान पाया ऐ मेरे हमदर्द 
करती हु कोशिश खाली न बैठु