खुशियों के देस में जहां मुस्कान का राज है,
हँसी की धारा बहती है बेख़बर सा जैसे बादल का बाज़ार।
चुटकुलों की डेढ़ियाँ हंसी के ताले हैं,
हर आदमी को बदलते रंगों में ले जाने की क्षमता है यहां।
एक बार एक बिल्ली थी, शरारती सी मुस्कान के साथ,
हंसी की गूंज फैलाती, सदा जीत की तैयारी के साथ।
छिपती थी छायाओं में, चालाकी से प्रतीक्षा करती,
हंसी से लोगों को भरती, एक दम से खिलखिलाती।
एक बत्तख़ थी, चंचलता के साथ चलती,
मजेदार चुटकुले सुनाती, आज़ादी के साथ हंसती।
भिंगरा के नृत्य से प्रसन्नता प्रकट करती,
हंसी ने भरी महक, रंग लाती, आगे न रुकती।
एक खुशनुमा बुजुर्ग आदमी, आंखों में चमक छोड़ते,
बेतुकी बातें सुनाते, हंसी के झोंके उड़ाते।
जादू सा वचनों में, ख़यालों में बुनते,
हंसी को भर जाते, हँसते-हँसते रुकते नहीं।
खुशी की धुन में जो खोये, पहले उड़ते बादल जैसे,
हंसी के नग्मे सुन
ाकर हमें तरोताज़ा करवाते।
क्योंकि मजेदार हास्य कविताओं में, हम खज़ाना पाते,
एक अद्वितीय पल, एक आनंद जिसे बहुमूल्य कहाते।