भीड़भाड़ की जिंदगी में कई बार हम खुद ही खो जाते हैं ,
है अपनों की कतार खड़ी पर देखें कौन ढूंढने आते हैं ,
शोर-शराबे में शहरों के फर्ज की राह पर मूरत बनी खड़ी है ,
उड़ीसा के युग में संयमता बेचारी सूरत लिए खड़ी है ,
कोई है लेकिन जो संकेतों के हथियार चलाता है ,
अहिंसा को निभाना हिंसा होने से बचाता है ,
कोई तो है जो गांधी का बंदर ना बन भी,
गांधी की ही राहों पर चल फर्ज अपना निभाता है ,
संयमता की बोली है व्यक्तित्व है सम्मान का ,
हर मौसम में धैर्य दिखाकर भी फल मिला अपमान का ,
काम से काम नहीं जिम्मेदारी के प्रतिकूल है ,
इस कलयुग में ट्रैफिक पुलिस ही है जो लोगों के अनुकूल है।।