राजनीतिज्ञों के वादे
होते हैं झूठे।
जनता को सिखाते वतनपरस्ती,
खुद करते मटरगश्ती।
सदन में हो खूब मस्ती
नहीं तो बहुत सुस्ती।
सदन में चर्चा
जेब से क्या खर्चा।
हाई टेक फोन का सहारा
भांति भांति से लुभाता।
जवाबदेही चुनाव तक सीमित -
कैसा ये किरदार है
किसके प्रति वफादार है।
सम्पति यूं बढ़ती इनकी
आता फंड मैनेजरों को बुखार।
खाइए लिट्टी चोखा और अचार।
कौन चीज ये खाते नहीं,
पर बिमार पड़ते नहीं।
खा खा के मोटाते हैं,
नेता जी तोंद सहलाते हैं,
पर हजम सब कर जाते हैं।
जनता के जनतंत्र पर
हुए राजनीतिज्ञ हावी।
जनतंत्र बना चुनावतंत्र -
चुनिए नेता अपना,
तजिए देखना सपना।
आदर्श लोकतंत्र नहीं,
ये कल्पतंत्र है।
नेताओं के वादे हैं
कल्पनाओं से आगे।
जमीनी सच्चाई भयावह है,
भूख व लाचारी हर ओर है।
जनता भूखी, नंगी और हैरान है।