उनकी बैचेनी,हमें चैन नहीं देती,दिल डूबता हैं...पलकें झपकने नहीं देती...
बहरहाल...उनके चैन के खैरमकदम,उन्हें तब तक सकून नही देतीं...ज़ब तक,मर कर भी ...मेरी कब्र मे मेरी रूह,बैचेन नहीं होती...
अनिल मिश्र आकाश