भौतिकता की चकाचौँध से,आज मनुष्य हो गया है अँधा,
इसलिए फल फूल रहा है, आज भृष्टाचार का धंधा ll
अपने हित हेतु जब अनैतिक साधन का, मन में आये विचार,
तो पनपता है व्यक्ति, समाज और देश में भृष्टाचार ll
आज चारों और है, भृष्टाचार का बोलबाला,
ऐसा कोई क्षेत्र नहीं, जहां न हुआ हो कोई घोटाला ll
चाहे निजी हो सरकारी, हर जगह है यह महामारी,
भृष्टाचार की सब जगह है, अपनी दुकानदारी ll
जब कोई ब्रिज, उद्घाटन से पहले गिर जाता है,
जब सड़क का मैटेरियल, पहली बारिश में घुल जाता है,
जब रक्षा सौदों में, देश हित कहीं छुप गौण हो जाता है,
जब बेरोजगारी से त्रस्त युवा, पेपर माफिया के चँगुल में फंस लुट जाता है,
जब नेता और अधिकारी, अपने कर्त्तव्य के लिए पैसा चाहता है,
तो यह सब आचरण, भृष्टाचार ही तो कहलाता है ll
भृष्टाचार को जन्म देता है, व्यक्ति का हित और स्वार्थ,
चूंकि आज व्यक्ति फल चाहता है, बिना करे पुरुषार्थ ll
आज समाज में भृष्टाचार, हो गया एक शिष्टाचार,
न कोई रिश्ता नहीं न कोई प्यार, सब पर भारी भृष्टाचार l
आधार, लाइसेंस या कोई स्कीम हो सरकारी,
भृष्टाचारी की सब में होती है, बहुत बलिहारी l
पुलिस, निगम, टैक्स, आरटीओ, भृष्टाचार को हैं बहुत प्यारे,
तभी इनसे पाला पड़ने पर लगा सिर चकराने l
भृष्टाचारियों को कानून का, अब कोई डर नहीं रहा,
गर रिश्वत लेते पकड़ा गया, तो रिश्वत देकर छूट रहा l
भृष्टाचार की गिरफ्त में है, आज है हमारा पूरा देश,
ईमानदारी और सत्य से शायद बिछुड़ गया है देश l
भृष्टाचार दीमक बन, कर रहा नित सबको खोखला,
अब तो यह मिटे तभी, हमारे देश और समाज का होगा भलाl
स्वरचित @ गोविन्द शर्मा, झोटवाड़ा, जयपुर