Kavitaon_ki_yatra

निहाल हुई अयोध्या नगरी।सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।।

निहाल हुई अयोध्या नगरी। सुन किलकारी त्रिभुवन सगरी।।

ठुमक चले जब चारों भाई। मुदित हुई तब तीनों माई।।

सुध-बुध खोए दशरथ राजा।कारज भूला सकल समाजा।काल प्रगति ज्यों करता जाता।समय निकट पढ़ने को

आता।।

चारों गुरुकुल भेजे जाएँ।दशरथ बोले शिक्षा पाएँ।।

विचार रानी से सब करके।पुत्रों से बोले जी-भरके।।

महत्व गुरु का उन्हें बताया।गुरुकुल शिक्षा को समझाया।।

धर्म सनातन क्या है होता। जो ना जाने क्या है खोता।।

पालन ब्रह्मचर्य का करने। नियमों को सब इसके वरने।।

गुरु की सेवा करनी कैसे।गुरुकुल में रहना है कैसे।। 

बोले उनसे राजा दशरथ। पूर्ण होंगे सकल मनोरथ।।

ज्ञान-गुणों के गुरु ही निधि हैं।तरने भवसागर से विधि हैं।।