वो मासूम आँखें , वो मुस्काते चेहरे ,
वो झूमती मचलती वो ख्वाबों की दुनिया,
हर चेहरे की जहाँ मुस्कान थी असली,
वो परियों के किस्सों किताबों की दुनिया,
गलियों में दौड़ते वो बेफिक्र कदम,
वो हैरान नज़रों के ख्यालों की दुनिया,
ज़िन्दगी की हकीकत से अनजान थे दिन वो,
मानो बिना कांटो के गुलाबों की दुनिया,
गुज़र गए दिन वो सूनी है गलियां,
अंधेरों से डरने वाले अब अँधेरे में रहते है,
लम्हे लम्हे बिखरते ख्वाब अपने,
ख्वाब देखने वाले अब ख्वाबों से डरते है,
अकेलेपन में जो उदास से रहते थे,
लोगों में हसने वाले अब लोगों से डरते है....