Naina Pandey

शाम की गपशप: मेरी डायरी के संग

           \"शाम की गपशप: मेरी डायरी के संग\" 

(केवल खास पाठकों के लिए) 

 

मैं कहीं भी चली जाऊँ, साथ रहेगी तो यह शाम, यह सुनहरे फ़ैले बदल, यह मस्त मौला उड़ान भरते पक्षी; यह ढलता सूर्य, इसकी रेशमी किरणें, दूर क्षितिज पर उड़ता हवाई जहाज़ (जो मुझे fancy सा लगता है); यह हवा में लहराती सौंधी खुशबू ,और एक प्यारी धुन...

 

\"वो शाम कुछ अजीब थी

ये शाम भी अजीब है

वो कल भी पास पास थी

वो आज भी क़रीब है 

वो शाम कुछ अजीब थी... \" 

 

कल की हो या आज की, शाम तो शाम होती है....वक्त शाम के सामने कुछ भी नहीं है। सदाबहार मौसमी मिजाज़ है शाम का!

 

 क्या दुनिया के हर कोने से वसंत ऋतु की शाम इतनी हसीन लगती होगी? क्या दूर पैरिस में बैठा कोई फ़ोटोग्राफर, या दक्षिण अमेरिका में बैठा कोई किसान, घास के मैदान पर बैठ शाम को यूँ घूरता होगा ? 

हाथ पर हाथ धरे क्या रूस की कोई सुंदर कन्या शाम को फ़ुर्सत से बैठती होगी? कितना हसीन विचार है... सब शाम की बदौलत!

 

 सुनो.... जो आसमान है ना, वह जोड़ता है, समूची मानव जात को... कैसे?

अभी बताती हूँ ... धरती टुकड़ों में बाटी है अलग-अलग महाद्वीप हैं,

 लेकिन... जो आसमान है वह तो एक ही है, एक ही सूर्य, एक ही चंद्रमा, हवा एक है (जो पूरी दुनिया की सैर करती है)।

 

 समझे मेरी \'आसमानी\' थ्योरी !

  हा हा हा हा हा....

 

 और लो आनंद (मेरी डायरी), तुम्हें लिखते लिखते सूर्यास्त ही हो गया। लेकिन शाम अभी भी उजली है, रोशनी अभी भी क़ायम है, तो फिर... मिलते हैं, कल शाम को!

 

 

#वसंत Delight 

   - नैना पाण्डेय