शाम आई है आँख भरने लगी
फिर ये मायूस मुझको करने लगी
दिल किसी कब्र की तरह है मेरा
आई ख्वाइश यहां तो मरने लगी
इस कदर मेरी आहें रोती यहां
घर की दीवार मुझसे डरने लगी
अब मेरी नींद अपने सब सपने
यार अब तेरे नाम करने लगी
झूठी उम्मीद थी जो मिलने की
वो मेरे दिल ही दिल में मरने लगी
अनमोल