अब नफरतों के जहां में
अब नफरतों के जहां में थोड़ी चाहत चाहिए
ज़िन्दगी में मुझको भी थोड़ी सी राहत चाहिए
शहर में घर एक, थोड़े दोस्त भी बन जाएं बस
मैने कब ऐसा कहा कि बादशाहत चाहिए
हम ज़रूरतमंद के भी काम थोड़े आ सकें
अब ख़ुदा हमको तो बस इतनी नियामत चाहिए
दुश्मनों से जब मिलेंगे हम अगर तो देखना
अब न हो शर्मिंदगी ऐसी रक़ाबत चाहिए
अनमोल