मेरी अलमारी में कल ही पड़ी मिली है मुझे
तेरी तस्वीर पुरानी पड़ी मिली है मुझे
कल यूं ही बैठा था मैं तो शराब खाने में
वहीं फिर शाम सुहानी पड़ी मिली है मुझे
जो कभी पन्नों में अपनी डायरी के गुम थी
वहीं रंगीन कहानी पड़ी मिली है मुझे
फिर वही मय, वही साकी,वही हसीं मंज़र
वहीं पर अपनी जवानी पड़ी मिली है मुझे
तेरी वो मय से भरे आंखों के सागर हैं
वहीं मौजों की रवानी पड़ी मिली है मुझे
कल यूं ही एक पुरानी फटी सी चादर में
तेरी उल्फ़त की निशानी पड़ी मिली है मुझे
वो जो ग़ज़लें थी पुरानी लिखी हुई \'अनमोल\'
फिर वही हर्फ ए ज़ुबानी पड़ी मिली है मुझे
अनमोल