Anmol Sinha

मेरी अलमारी में कल ही पड़ी मिली है मुझे

 

मेरी अलमारी में कल ही पड़ी मिली है मुझे

तेरी तस्वीर पुरानी पड़ी मिली है मुझे

 

कल यूं ही बैठा था मैं तो शराब खाने में

वहीं फिर शाम सुहानी पड़ी मिली है मुझे

 

जो कभी पन्नों में अपनी डायरी के गुम थी

वहीं रंगीन कहानी पड़ी मिली है मुझे

 

फिर वही मय, वही साकी,वही हसीं मंज़र

वहीं पर अपनी जवानी पड़ी मिली है मुझे

 

तेरी वो मय से भरे आंखों के सागर हैं

वहीं मौजों की रवानी पड़ी मिली है मुझे

 

कल यूं ही एक पुरानी फटी सी चादर में

तेरी उल्फ़त की निशानी पड़ी मिली है मुझे

 

वो जो ग़ज़लें थी पुरानी लिखी हुई \'अनमोल\'

फिर वही हर्फ ए ज़ुबानी पड़ी मिली है मुझे

 

अनमोल