अपने किये गुनाह सभी धो चुका है वो
सुनता हूँ कल की रात बहुत रो चुका है वो
अब दोस्त, एक यार, हबीब और चारागर
एक मुझको खो के जाने क्या-क्या खो चुका है वो
कितनी ही रात जागता फिरता था राहगीर
कल रात को सदा के लिए सो चुका है वो
अब चाह कर भी गुल नहीं आएंगे उसके पास
काँटों को अपनी राह में खुद बो चुका है वो
अब तो चमक ही जाएं कहीं आँखें सुर्ख सी
अब अश्क से यूं आंखों को धो चुका है वो
अनमोल