जो भी मिली है चीज़ निहायत बुरी मिली
फिर सोचता हूं कैसी मुझे ज़िन्दगी मिली
बिछड़े जो तुझसे आया समझ मुझको नाज़नीन
जीने की मुझको आज नई रोशनी मिली
जब आज झांका मैं ग़रेबाँ में खुदके तो
जाने ही कितनी मुझमें यहां भी कमी मिली
बनती नज़र में सबकी सितमगर वो जां मेरी
उसकी भी आंखों में मुझे अब नमी मिली
आवारगी में काट दी मैने तो ज़िन्दगी
ना दहरियत मिली न ही अब बंदगी मिली
(दहरियत : नास्तिकता)
अनमोल