Anmol Sinha

जो भी मिली है चीज़ निहायत बुरी मिली

जो भी मिली है चीज़ निहायत बुरी मिली

फिर सोचता हूं कैसी मुझे ज़िन्दगी मिली

 

बिछड़े जो तुझसे आया समझ मुझको नाज़नीन

जीने की मुझको आज नई रोशनी मिली

 

जब आज झांका मैं ग़रेबाँ में खुदके तो

जाने ही कितनी मुझमें यहां भी कमी मिली

 

बनती नज़र में सबकी सितमगर वो जां मेरी

उसकी भी आंखों में मुझे अब नमी मिली

 

आवारगी में काट दी मैने तो ज़िन्दगी

ना दहरियत मिली न ही अब बंदगी मिली

(दहरियत : नास्तिकता)

 

अनमोल