वादा, दिलासा अब न कोई एतबार था
पर शाम होते ही क्यों तेरा इंतज़ार था
शिक्वों से, बरहमी से, न नालों से था भरा
तर्क-ए-वफ़ा भी अपना बहुत यादगार था
झुकती हुई नज़र हों या जुल्फें खुली हुईं
अब क्या बताएं हमको भी किस किस से प्यार था
अच्छा हुआ बरस ही पड़ी आँखें अब मेरी
थम सा गया जो दिल में हमारे ग़ुबार था
अच्छा हुआ उतर गया सर से हमारे अब
वो इश्क का मियादी जो अपना बुखार था
अनमोल