मैं इंसान हूं।
भगवान नहीं हूं।
चाहतें, विचार, कृत्य
भिन्न भिन्न हैं।
सपने बहुत हैं।
आस प्रयास अभ्यास -
असीमित हैं ये।
नतीजे हाथ में नहीं
पर नतीजे हैं।
कुविचार हैं तो
चमत्कार भी हैं।
चिकित्सक निरोगी बनाता है।
शिक्षक किरदार बनाता है।
संघर्ष मजबूत बनाता है।
ये भगवान स्वरूप हैं।
शिक्षित एकजुट समाज
स्वर्ग समान है।
अशिक्षित बिखरा समाज
नर्क समान है।
स्वर्ग, नर्क, भगवान -
किसने क्या देखा?
पृथ्वी पर तो
इंसान के ही
कर्म और स्वरूप
सर्वत्र विद्यमान हैं।