दिल में किसी की याद को लाना फ़िज़ूल है बुझती हुई शमा को जलाना फ़िज़ूल है
वो शख्स बेवफ़ा है ये मालूम है मुझे उम्मीद कोई उससे लगाना फ़िज़ूल है
दिल में छुपी जो बात थी नज़रों ने की अयाँ अब राज़ कोई दिल में छुपाना फ़िज़ूल है
वो संगदिल समझता नहीं दिल की बात तो फिर अपने अश्क को यूं बहाना फ़िज़ूल है
रखना नहीं है जब तुम्हें कोई भी ताल्लुक फिर पन्नों में ये फूल दबाना फ़िज़ूल है
जब प्यार कोई दिल में तुम्हारे बचा नहीं तो बातों से ये फिक्र जताना फ़िज़ूल है
\'अनमोल\' तुम ग़ज़ल से ही अपनी बयां करो यूं दिल में अपना दर्द छुपाना फ़िज़ूल है
अनमोल