Deepak Vohra

दिल मेरा पत्थर हो जाए

मैं तुम्हें प्यार करता हूँ 

जैसे मछली करती है 

पानी से 

मैं डूब जाना चाहता हूँ 

तुम्हारे प्यार में 

जैसे नदी डूब जाती है 

सागर में

 

मैं तुम्हें, 

उस गहराई तक चाहता हूँ 

जहाँ ख़्वाब और हकीकत 

एक हो जाते हैं 

सवालों के जवाब 

ख़ुद-ब-खुद मिल जाते हैं

 

तुम्हारी याद आती है 

चाय बनाते हुए 

नहाते हुए 

सोते-जागते हुए 

किताब पढ़ते हुए 

कविता लिखते हुए 

तुम्हारे पास आते हुए 

तुमसे दूर जाते हुए

 

मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूँ 

तुम्हारे होते हुए

न होते हुए

 

मैं तुम्हें चाहता हूँ 

बेहिसाब 

निस्वार्थ

 

मैं तुम्हें किसलिए चाहता हूँ इतना 

यह अब तक मुझे भी नहीं पता 

मैं तड़पता हूँ तुम्हारे लिए 

जैसे कवि सही शब्द ढूँढता है 

अपनी कविता के लिए

 

तुम मेरी साँसों में बसी हो 

मेरी हैंसी में, आँसुओं में 

हर छोटे-छोटे पल में 

जो सिर्फ हमारे बीच हैं

 

दिल मेरा पत्थर हो जाए 

गर मैं तेरे दिल को 

प्यार की तपिश से 

पिघला न सकूँ

 

और अगर कभी मैं न रहूँ 

तो भी तुम मह‌सूस करोगी 

मेरे प्रिय को 

हवा में, धूप में 

पत्झड़ में, सर्दी में 

उन छोटी-छोटी बातों मे 

जो हमारे बीच हुई

 

तुम मुझे मिलो या न मिलो

तुमसे प्यार

करता रहूँगा 

अनंत तक 

बिना किसी कारण 

बस तुमको चाहने के लिए