Anmol Sinha

तेरी बातें (नज़्म)

तेरी बातें (नज़्म)

 

कभी शोले, कभी शबनम

मेरे जख्मों पे है मरहम

तेरी बातें

 

जिनमें खो जाऊं कहीं

डूबकर सुनता ही रहूं

वाबस्ता तुझसे नए ख़्वाब

मैं बुनता ही रहूं

कभी रोता रहूं सुनकर

कभी हंसता ही रहूं

तेरी बातें, तेरी बातें, तेरी बातें

 

वो तेरा बात करते-करते 

थोड़ा मुस्कुरा देना

कभी हंसकर के वो उंगली का

दांतों में दबा देना

मेरे ख्यालात में आ-आकर के

तेरा गुदगुदा देना

कि जिनको करते-करते याद

गुज़ारी कई रातें

तेरी बातें, तेरी बातें, तेरी बातें

 

तेरी बातों में जो राहत है

वो कहीं भी नहीं

तेरी बातों में जो लज़्ज़त है

वो कहीं भी नहीं

तेरे हर लफ्ज़ 

दिल को शाद किए जाते हैं

हम तेरे बाद उनको याद किए जाते हैं

तेरी बातों से बढ़कर कहीं सुकून नहीं 

मेरे सर पर अलावा इसके 

कोई जुनून नहीं

अब इससे ज़्यादा तेरी बातों की

क्या बातें करना

उनको सोच-सोचकर 

आंखों में रातें करना

वो तेरे प्यार में डूबी हुई तेरी बातें

कि कैसे भूल जाऊं मैं तेरी सारी बातें

इसलिए आज उन्हें बयां किए जाता हूं

अपने इस नज़्म से अयाँ किए जाता हूं।

 

अनमोल