क्या मेरे प्यार की कोई ख़बर नहीं है तुम्हे
मेरे इक़रार की कोई ख़बर नहीं है तुम्हे
मेरे इस दिल के गुलिस्तां के बाग़बाँ तुम हो
क्या गुल-ओ-ख़ार की कोई ख़बर नहीं है तुम्हे
जिसकी आवाज़ से धड़कन में लहर उठती थी
क्या अब उस यार की कोई ख़बर नहीं है तुम्हे
बांट लेता था जो ग़म को भी तेरे ऐ हमदम
उसी ग़मखार की कोई ख़बर नहीं है तुम्हे
अनमोल