Anmol Sinha

अपने हाथों से फिसलते हुए देखा मैंने

अपने हाथों से फिसलते हुए देखा मैने

कई रिश्तों को बदलते हुए देखा मैने

 

वो जो जमकर कभी चट्टान गई थी बन तब

फिर वही बर्फ़ पिघलते हुए देखा मैने

 

डगमगाया किए कल जो ये, यूं बेफिक्री में

उन्हीं कदमों को संभलते हुए देखा मैने

 

कल उसी शख्स की सूखी हुई उन आँखों से

फिर से अश्कों को निकलते हुए देखा मैने

 

दफ्न करके जिन्हें सोए थे कभी हम सुकूं से

हसरतों को क्यों मचलते हुए देखा मैने

अनमोल