Anmol Sinha

ये मैं ही था जो यहां सपने कोई सजा न सका

ये मैं ही था जो यहां सपने कोई सजा न सका

इस बड़ी दुनिया में छोटा सा घर बना न सका

 

ये ग़ज़ल लिख दी है मैने कि क्या मैं करता दोस्त

दिखा घाव न सका और कभी छुपा न सका

 

लगा मैं लिखने यूं खत अपने आप को भुला के

याद कर भी न सका और उसे भुला न सका

 

इस तरह उजड़ी है क्यों दिल की ये मेरी दुनिया

कि तेरे बाद मैं दिल को कहीं लगा न सका

 

बात जो उससे छुपानी थी कह दी आंखों ने

राज़ मैं कह न सका और फिर छुपा न सका

 

मैं यूं आवारा फिरा हूं जुदाई में तेरे

घर में रह भी न सका और घर बसा न सका

 

इस तरह से क्यों ये पत्थर हुआ है दिल मेरा

सिवा तेरे कोई ये दिल कभी दुखा न सका

 

सहा है मैने भी सदमे को इस तरह \'अनमोल\'

ज़ब्त भी कर न सका और फिर भुला न सका

अनमोल