हाथों की लकीरों में तेरा नाम नहीं है
इससे बड़ा मेरे लिए इल्ज़ाम नहीं है
अक्सर ये धड़कता है यहां याद में तेरी
लगता है मेरे दिल को कोई काम नहीं है
दो पल के लिए भी जो कभी भूलें हों तुमको
ऐसी तो कोई सुबह कोई शाम नहीं है
प्यासे भी हैं हम और मयकदे में हैं बैठे
लेकिन मेरे हाथों में कोई जाम नहीं है
\'अनमोल\' कहां तुम हो चले दिल लिए देखो
इस शहर में इस दिल का कोई दाम नहीं है।
अनमोल