Anmol Sinha

मेरी रातें (नज़्म)

मेरी रातें (नज़्म)

मेरी रातें बहुत काली हैं

बहुत काली हैं मेरी रातें

 

अकेले कमरे में कटती हैं

खुद के ही साथ यादों में

जाने किस जनम की याद

किन कसमों में, वादों में 

 

अंधेरे में दिखता कुछ नहीं

पर सब साफ दिखता है

वो तन्हा मैं, तन्हा आईना

सबकुछ साफ दिखता है

घड़ी की सुइयां घूमती हैं

तब वहां पर शोर होता है

जब अंधेरा ही अंधेरा वहां

हर रोज़ चारों ओर होता है

 

इतनी स्याह रात में कमरे में

सब कुछ देख लेता हूं

मैं अरमानों को, ख्वाहिशों को

अक्सर खुद से समेट लेता हूं

कभी तकिए के ऊपर सर

कभी तकिए के नीचे सर

दुआ ये ही अब रहती मेरी 

नींद आ जाए किसी पहर

 

हर पहर रात का यहां 

बहुत भारी गुज़रता है

हां ये सच है याद में 

अब तुम्हारी गुज़रता है

 

चलो लगता है यहां 

अब होने को है सहर 

कट गया आंखों में ही

रात का यह भी पहर।

 

अनमोल