जो कहना हो न कह पाएं मगर फिर भी समझ जाएँ उसे जज़्बात कहते हैं
कभी तन्हा से बैठे हों किसी की याद में गुम हों वो ही जब सामने आयें उसे जज़्बात कहते हैं
किसी भी ज़िक्र में यूँ ही कभी भूले अचानक ही उसी का नाम आ जाये उसे जज़्बात कहते हैं
हसीं मंज़र को देखा तो पुरानी कुछ वो तस्वीरें नज़र के सामने आयें उसे जज़्बात कहते हैं
वो मेरे ख़त के लफ़्ज़ों को नज़र से चूम कर यूँ ही अकेलेपन में दोहराएं उसे जज़्बात कहते हैं
जो वाबस्ता तुम्हीं से थे फिर उन किस्सों की यादों से यूं जब ये आँख भर आये उसे जज़्बात कहते हैं
जब उनसे सामना होगा तो ये होगा या वो होगा जो सोचें और डर जाएं उसे जज़्बात कहते हैं
उसे देखा परेशां तो मिलाते उससे नज़रें ही ये आँखें अपनी भर आयें उसे जज़्बात कहते हैं
ये दिल उसका भी टूटा है हां अब \'अनमोल\' आरी है ये अब शायद समझ जाए किसे जज़्बात कहते हैं l
(आरी (अरबी): परेशान/वंचित/बेज़ार)
अनमोल