मैं और तुम
तान्हएयों में महकती इक रात हो तुम
हर तरफ बिखरी हैं खामोशी
उनमें घुलती आवाज हो तुम
टूटे अरमानों को सजाती
तारो की बारात हो तुम
मुझमें होने वाले रौंशन
खुदा का करिश्मा-ए-नूर हो तूम!
वक्त के टूटे पंखो संग
लम्हों की परवाज हो तुम
दिल के सुने सज पर
हौले से उभरता राग हो तुम
रूठे-रूठे तकदीर में बसती
खवाहिश की बरसात हो तुम
मेरी बात छुपाए गुमसुम
एक चुप-चुप सी किताब हो तुम!
अनजानी इन राहों में,
मेरे हमसफ़र , हमराज हो तुम
मन के वीरानों में उतारती,
मखमली सहर -ए-आगाज हो तुम
धडकनों में सिमटती जाती
अनकहे जज्बात हो तुम
मुझसे कुछ दूर सही पर
मुझमे ही आबाद हो तुम
मुझमे ही आबाद हो तुम!