mukulraghav

JAAT-PAAT

जात पात को लेकर यहाँ है जीते
धर्म के नाम पर रोज़ है मरते,
             
                 किसने बनायीं है ये रीत न्यारी,
                 क्यूँ लगती है जात अपनी सबको प्यारी,

एक इंसान के कितने रूप बनाये.
धर्म की आग ने ना जाने कितने घर है जलाए,

               देश है हमारा जग से प्यारा,
              जात-पात ने कर दिया जिसका बटवारा,

ख़त्म हो जाएगी ये ''मैं'' की लड़ाई,
अगर जात-पात की मिट जाए  ये बुराई.

 

-: मुकुल प्रताप सिंह
500/3 प्रेम नगर
गुडगाँव
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