हवा बदलाव की

uglykavi



रंगला पंजाब -
वह सूबा
जहाँ भाजपा कांग्रेस की
गिना खामियाँ, मांग रही वोट।
बगल में कांग्रेसी मुख्यमंत्री -
दबा नहीं पा रहा हंसी।
जोर लगाकर कर रहे,
भाजपाई अमरिंदर की जयघोष।
विख्यात चुनावमंत्री उर्फ प्रधानमंत्री -
पगड़ी पहन, बने फिर रहे सरदार।
अकाली बेअदबी के आंसू रो रहे।
भाजपाई कांग्रेस के परिवारवाद का रोना रो रहे।
नजर थोड़ी कमजोर है इनकी -
अकालियों का परिवारवाद दिखता नहीं।
अमरिंदर को बकरा बना -
नए जोश से मांगे कांग्रेस वोट,
मानो महाचोर पर की महाचोट।
तू तू मैं मैं कूं कूं कैं कैं।
ऊबती परेशान जनता को रिझाने के
खेल हैं ये पुराने।
नशा, बेरोजगारी, मुद्रास्फीति ने की
सबकी हालत पस्त।
उद्योग हो या किसानी -
सब ओर बदहाली।
कांग्रेस भाजपा की मजबूत सरकारें -
इन समस्याओं के आगे फेल।
नापाक हैं ये - साबित हुआ।
न्याय व्यवस्था को ठेंगा दिखा,
मजीठिया जब अदृश्य हुआ।
चाय दुकान पर बैठा,
जनतंत्र हंस रहा - हा हा हा।
संदेश पे संदेश -
नेताओं को भेज रहा।
"काम गिनवाइए, वोट ले जाइए"।
कवि चन्द्रेश कह रहे -
बंद करिये ये
तू तू मैं मैं के खेल।
तीसरे को मौका दीजिए।
अंधेरी रात अब खत्म हो चली,
सुबह दस्तक दे रही।
दिल्ली से एक
आशा की किरण दिख रही।
नए नेता चुनिए,
लोकतंत्र पर भरोसा रखिए।

  • Author: uglykavi (Offline Offline)
  • Published: February 19th, 2022 04:57
  • Comment from author about the poem: पंजाब सूबे में बेहद रोचक चुनाव हैं। इस मद्देनजर एक कविता पेश-ए-खिदमत है।
  • Category: Special occasion
  • Views: 49
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