VISHWAS ( विश्वास )

VERSIFIER-MOHIT

बिखर गया हूं अंदर से ,
जो तू छोड़ गई हों ।
जिस पर था भरोसा मेरा ,
वो रिश्ता तोड़ गई हों ।
सीधा था जिंदगी का रास्ता ,
तुम वो भी मोड़ गई हों ।
गम की एहमियत समझ
आई जो तुम छोड़ गई हों ।

क्या पता इस गम में क्या कर बैंठू ,
बुरी आदतों के बिस्तर पर क्या मैं लेटू ?

पर मैं इतना भी कमज़ोर 
नहीं की खुदको पाऊंगा ,
मैं वो सितारा हूं ,
जो आसमां में अकेला छाऊंगा ।

इस गम को ढाल बनाकर ,
कुछ ऐसा कर जाऊंगा ,
तू तो पछताएगी ,
पर मैं तेरा शुक्रिया मनाऊंगा ।

  • Author: VERSIFIER-MOHIT (Offline Offline)
  • Published: April 5th, 2022 09:25
  • Comment from author about the poem: It is just only the pain which turned into lesson .
  • Category: Love
  • Views: 13
Get a free collection of Classic Poetry ↓

Receive the ebook in seconds 50 poems from 50 different authors


Comments +

Comments1



To be able to comment and rate this poem, you must be registered. Register here or if you are already registered, login here.