अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं

Muhammad Asif Ali

अपनी क़िस्मत को फिर बदल कर देखते हैं
आओ मुहब्बत को एक बार संभल कर देखते हैं

चाँद तारे फूल शबनम सब रखते हैं एक तरफ
महबूब-ए-नज़र पे इस बार मर कर देखते हैं

जिस्म की भूख तो रोज कई घर उजाड़ देती है
हम रूह-ओ-रवाँ को अपनी जान कर के देखते हैं

छोड़ देते हैं कुछ दिन ये फ़ज़ा का मुक़ाम
चंद रोज़ इस घर से निकल कर देखते हैं

लौह-ए-फ़ना से जाना तो फ़ितरत है सभी की
यार-ए-शातिर पे एतिबार फिर कर कर देखते हैं

कौन सवार हैं कश्ती में कौन जाता है साहिल पर
सात-समुंदर से 'आसिफ' गुफ़्तगू कर कर देखते हैं

~ मुहम्मद आसिफ अली (भारतीय कवि)

  • Author: Muhammad Asif Ali (Offline Offline)
  • Published: May 12th, 2022 00:25
  • Category: Love
  • Views: 12
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Comments +

Comments1

  • dusk arising

    Obviously you can write in English which is plain from your profiles both here om MPS and elsewhere where you call yourself 'famous poet' and 'great poet'.
    If you want your poetry to be read and appreciated here on this English speaking site it would be sensible to post your writing in English. That is how your 'fame' will spread.



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