• जब गरमी के बाद उस दिन बादल आस्मान घेरना शुरू करते है,
लगता है जैसे अब वो इन्तझार की घडी खत्म हो चुकी हैं।
• बहती हवाए जब शरीर को छु लेती है,
शरीर के एक-एक अंग को अपना बना लेती है।
• टिप,, टिप,, टिप,, बारीश की छीटे जब सतह पर गिरने लगी,
गिली मिट्टी की खुश्बु हृदय मे समाने लगी ।
• लगा जैसे अब इन्तझार की घड़ी खत्म हो चुकी है,
साल की पहली बारीश प्रवेश ले चुकी है ।
• और कैसे न आए, जब कोयल अपनी मधुर आवाज में बारीश को बुलाती थी ,
ये मधुर आवाज सुनकर बारीश तो आनी ही थी ।
• एक तरफ जब बादल की धीमी गर्जना पूरे वातावरण को प्रफुल्लित करती है,
तभी बरसात की कोमल थपकियाँ अंतरंग में एक विशिष्ट भावना उजागर करती है।
• गीले चमकते पत्ते हलचल करके अपने खुश होने का इशारा करते हैं,
और, खुशबूदार फूल कली में से बहार आकर इस अद्भूत मौसम का अनुभव करते हैं।
• पंछी भी सुरीले आवाज में गीत गाते है, तो वातावरण में जान डाल देते है,
पता चलता है कि वातावरण, यानी की, प्रकृति, प्रकृति नहि, परंतु एक खुली किताब है, जो ईश्वर हमे प्रदान करते है ।।
- Author: Daksh Mithani ( Offline)
- Published: November 29th, 2022 05:20
- Comment from author about the poem: This poem is all about beauty of nature, beauty of rain and the whole scenario at the time of rain.
- Category: Nature
- Views: 3
Comments1
Good write D - I used the 'Translate to English' button.
Thanks
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