जब बाल हुए उजले,
शिखर पर बचे आधे।
जवानी सांझ को खटखटाए,
अगली पीढ़ी चढ़ी जाए।
चन्दू भाई बहुत घबराए,
कोई तो मुझे बचाए।
आसमान में कड़की बिजली,
गड़गड़ाए मेघ,
गरजे पुरखे -
अबे गधे -
इससे कौन बच पाए।
दिल से आई आवाज -
पर देवतुल्य -
बचना कौन ना चाहे।
जीवन की खरी सच्चाई है,
पर स्वीकार्य कतई नहीं है।
कवि चन्द्रेश कहते हैं -
कैसी है ये मूर्खता,
कैसी ये जिद।
बुद्घिमान की हुई
मति भ्रष्ट।
यही अंत है,
यही सत्य है।
- Author: uglykavi ( Offline)
- Published: December 6th, 2022 01:08
- Category: Humor
- Views: 7
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