ले लिया नोट, दे दिया वोट।
पी ली दारू, हो गए मस्त।
चुन लिए महान पूजनीय नेता।
शुरु हुई फिर पंचवर्षीय परियोजना।
महंगाई नहीं थम रही।
मजदूरी कम पड़ रही।
तन्ख्वाह नहीं बढ़ रही।
मुश्किल जीवन कट रहा।
ऐसे में -
नोट कहाँ से आते
नेताओं के पास ?
इन दानवीर नेताओं पर,
क्या खुदा है मेहरबान ?
दुनिया है लेनदेन की।
बिन पैसे के काम न कोई हो रहा।
हर सरकारी काम पैसे माँग रहा।
हर सरकारी अफसर पैसे खा रहा।
कुछ सरकारी अफसर वसूली कर रहे।
आप पैसे खिला रहे हो -
एक बार नहीं कई बार।
फिर नेता क्यूं निश्चिंत हैं,
पैसे खिला के एक बार ?
वो एक बार खिला के खुश हैं,
आप बार-बार खिला के दुखी हैं।
क्यूं ये पासा पलटता नहीं ?
क्यूं ऐसा होता नहीं -
पैसे एक बार खिलाएं हम।
पांच साल निश्चिंत रहें हम।
बिन पैसों के काम होएं सरकारी।
इन बचे पैसों से जिताएं हम,
अपने बीच के कर्मठ नेता को।
क्या ऐसा संभव है ?
या कोई कल्पना है ?
बात वहीं फिर आती है -
बिन पैसों के काम कोई होता नहीं।
पैसे देना आपकी मजबूरी है,
पर क्या पैसे लेना मजबूरी है ?
अगर नहीं लेंगें इनसे नोट,
क्या फिर भी देंगे इनको वोट?
हाथ जोड़कर आता नेता,
वोट की भीख मांगता नेता।
मजबूरी उसकी या आपकी है?
पांच साल तक जो नेता -
आपको कहीं दिखता नहीं,
आपको कभी पूछता नहीं,
वही नेता वोट के लिए,
कौन सा काम करता नहीं?
बड़ी बड़ी बातें बनाता नेता।
मीठी मीठी बातें करता नेता।
दारू और पैसे लुटाता नेता।
बड़ा हमदर्द बनता नेता।
डराता धमकाता नेता।
असल में -
वजूद की लड़ाई लड़ता नेता!
क्या उसकी कमजोरी है?
क्या आपकी शक्ति है?
वोट न मिलने पर -
बड़े से बड़ा नेता
ख़त्म हो जाता है!
वोट मिलने पर -
आपका अपना
नेता बन सकता है।
जनतंत्र की अमूल्य वस्तु,
वोट आपके हाथ में है!
इसकी जिम्मेदारी को समझें,
इसकी जिम्मेदारी को संभालें।
डर भय से कोई,
दारू पैसों पर कोई,
अपनी इज्जत लुटाता नहीं।
आपका वोट आपकी इज्जत है।
वोट सोच समझकर दें।
नेता बदलें, देश बदलें।
बच्चों का भविष्य उज्जवल करें।
- Author: uglykavi ( Offline)
- Published: January 4th, 2023 21:51
- Comment from author about the poem: This is one of my best poems where I try to illustrate importance of voting and reality of democracy.
- Category: Sociopolitical
- Views: 4
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