बिखरा रिश्ता

ankita awasthi

नज़र लगी न जाने किसकी 
प्यारा सा ये रिश्ता बिखर गया 
हाय लगी न जाने किसकी 
कल तक मेरे पास आज दिल से दूर हो गया 
गलती मेरी थी या तुम्हारी ये तो रब ही जाने 
सजा के ऐवज में जान जाएगी या दिल ये तो रब ही जाने 
न मै समझ पाई तुम्हे न तुमने मुझे जाना 
प्यार का ये अपना रिश्ता कैसे हो गया बेगाना 
कल तक था सब कुछ कितना अच्छा 
अपना हर वादा लगता था कितना सच्चा 
तुझ पर था मुझे खुद से ज्यादा यकीं 
तेरे बिना ये ज़िन्दगी कुछ भी नहीं 
शायद अपने जज्बात मै ही समझा न पाई 
दिल से तो तुझे चाहा पर तेरे दिल को भा न पाई 
शायद कुछ ज्यादा ही प्यार कर बैठी 
तेरे प्यार को किसी और के साथ बाट न पाई 
कस्मे खाई थी ज़िंदगी भर साथ चलने की 
पर तेरी हमसफ़र हमनवा बन न पाई 
शायद अपना साथ यही तक लिखा था 
शायद उपरवाले ने किस्मत का खेल कुछ और ही रचा था 
हर मन ली विधाता से होके नियति से मजबूर 
राह चुन ली है जो ले जाये इन सबसे कही दूर 

  • Author: ankita awasthi (Offline Offline)
  • Published: February 21st, 2023 11:32
  • Category: Unclassified
  • Views: 3
Get a free collection of Classic Poetry ↓

Receive the ebook in seconds 50 poems from 50 different authors




To be able to comment and rate this poem, you must be registered. Register here or if you are already registered, login here.