इंसाफ की चुनौती

uglykavi

गहराई में गोते लगाना
आपके बस की बात नहीं।
सतह से चीजें अलग दिखती हैं
अथवा दिखाई जाती हैं।
गहन अध्ययन जरूरी है,
झूठ के पर्दाफाश का पथ है।
मानव मस्तिष्क नायाब है,
कुदरत की अनूठी देन है -
कितना भी इस्तेमाल कम है।
तकलीफ होती है 
जब यह वंचित रहता है -
शिक्षा से, परिस्थितियों से,
विचारों से, किताबों से,
इतिहास से, सुझावों से
और चुनौतियों से।
सदियों से इंसाफ पर
विचार व शोध हो रहा।
इंसाफ अध्ययन का विषय है -
एक आदर्श परिभाषा,
एक कोशिश है।
कानून बदलते हैं।
अदालतें फैसले बदलती हैं।
नयी जानकारियां व परिस्थितियां
सोच व समझ बदलती हैं।
ऐसे में इंसाफ का आदर्श
संभव है क्या?
क्या उसकी कोशिश व्यर्थ है?
क्या इंसाफ उद्देश्य हो सकता है?
क्या यह उद्देश्य सिर्फ
न्याय मांगनेवालों का है?
क्या सचमुच यह
इतना मुश्किल है?
क्या नाइंसाफी ही
यथार्थ थी, है और रहेगी?
क्या हार मान लेना ही समाधान है?
इंसाफ की कोशिश
क्या संभव नहीं?
अतीत नहीं बदल सकते
पर क्या वर्तमान और
भविष्य भी नहीं बदल सकते?
क्या इसे साधने की कोशिश
नहीं होनी चाहिए?
कवि चन्द्रेश कहते हैं -
जी नहीं जनाब,
यही एक रौशनी की किरण है।

  • Author: uglykavi (Offline Offline)
  • Published: November 13th, 2023 23:41
  • Comment from author about the poem: Justice has much been debated and written about. The law books are vast and yet people are deprived, dissatisfied and disillusioned. Legal & Just are not synonyms. Justice has to be primary goal of Society but is it and why not? I have attempted to arise and awaken people to strive for Justice as a Nirvana despite the challenges.
  • Category: Sociopolitical
  • Views: 0
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