लूटतंत्र वायरस

uglykavi

गली गली में शोर है
चौकीदार ही चोर है।
दोस्तवाद जरिया है,
जांच एजेंसियां मोहरा हैं,
न्याय व्यवस्था नदारद है,
खाली खजाना नतीजा है।

नेता को खाने से फुर्सत नहीं,
जनता खाने को मोहताज है।
खाना बंट रहा है,
वोट मिल रहा है,
खजाना लुट रहा है।

देश कर्ज में डूब रहा
पार्टी फंड लबालब है
स्विस बैंक मालामाल हैं।

चुनाव लोकतंत्र का त्योहार है।
उम्मीदवारोे की लम्बी फ़ेहरिस्त है,
काबिलोे की कमी है।

काबिल को आगे आना होगा।
काबिल को आगे लाना होगा।
कवि चन्द्रेश कहते हैं -
मुश्किल है ये, संघर्ष है ये,
पर प्रयास भी एक जीत है।

देश चूसकर वायरस बढ़ रहा।
बिमारी ये पुरानी है
पर लाइलाज नहीं है।
खून पसीने की कमाई
क्या वायरस को लुटानी है।

गली में चोर पकड़ाता है,
भीड़ बुरी मौत देती है।
वायरस के लिए
रक्तपिपासु होना होगा।

आचार संहिता, देशभक्ति,
जनकल्याण को
नए सिरे से परिभाषित करना होगा।

सरहद पर आक्रमण होता है,
फौजी जान पर लड़ता है।
ठंड से नहीं अकड़ता है,
गोली बम से नहीं घबराता है।

खबरों पर निगाहें गड़ी होती हैं,
हर नागरिक हर कीमत को
तैयार दिखता है।

हर नागरिक को सिपाही बनना होगा,
वायरस को जड़ से मिटाना होगा।

  • Author: uglykavi (Offline Offline)
  • Published: November 21st, 2023 01:17
  • Comment from author about the poem: Democracy is resulting in an open loot. Read the poem to understand. This is close to my heart. Thanks.
  • Category: Sociopolitical
  • Views: 4
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Comments +

Comments1

  • 2781

    We need a benevolent king.

    • uglykavi

      No. We need public awakening, movement and commitment. Public has to devote a certain percentage of their time and energy for this purpose just like public pays a percentage of tax required by law. We need to bring agility in government. Politics, law and governance have to be first class subjects for students and not second to science, math etc.



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