चुनावी खेल

uglykavi

ढोल नगाड़े बज रहे,
टीवी, रेडियो, अखबार फट रहे -
प्रचारतंत्र का भार सह रहे।
महामहिम कह रहे-
हम राम को लाए हैं।
हमरा विकल्प नहीं है।

महामंत्री हैं फ़िराक में
अपनी सल्तनत को लाने के।

मुख्यमंत्री कह रहे-
मंदिर वहीं बनाएंगे
मस्जिद जहाँ गिराएंगे।

राज्य हमरा,
क्षेत्र हमरा,
राम स्थापना
हमरे यहाँ।
क्या हम राजा
नहीं बन पाएँगे।
क्या हमरा नम्बर
नहीं लगाएंगे।
हम कहाँ के रह जाएंगे?
सपने धरे रह जाएंगे।

कहें जनतंत्र के माई बाप -
सभ्यता जा रही,
भाषा संयम खो रही।
अभिलाषा का पता नहीं,
हताशा को गले लगाएंगे।
नशा करेंगे और कराएंगे।

नमक रोटी खाएंगे -
पर मंदिर का घंटवा बजाएंगे।
ठन ठन गोपाल रहेंगे,
पर हिन्दू मुसलमान खेलेंगे।

खेल में आनंद है,
क्रिकेट में आनंद है।
कहें शाह कुमार -
पिच हमारी मैदान हमारा,
हार कैसे जाएंगे।
जनता को मूर्ख बनाएंगे-
राम हमारे हनुमान हमारे
हार कैसे जाएंगे।

कहें कवि चन्द्रेश-
बच्चे पापा तुम्हारे हैं-
पर अम्पायर नहीं।
मैच अंतरराष्ट्रीय है-
फिक्सिंग आसान नहीं।

भाई भतीजावाद व
धर्म की राजनीति
देश को खोखला कर रही।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई,
अमीर हो या हो गरीब -
याद करें कोरोना देवी को,
सबको तीसरे नेत्र से देखेगी।

जंगल साफ हो रहे।
गंदे नाले, कचरे के ढेर,
हवा दूषित, पानी प्रदूषित।
कहाँ बच के जाएंगे?
प्राकृतिक आपदा
सबको ले जाएगी।
मौत जीत जाएगी,
हम सब मातम मनाएंगे।
कहते हैं कांग्रेस कुमार-
हम पैदल राजा बन जाएंगे।

चुनाव से पहिले-
चार काम करवा के,
चार बात मनवा के,
चार उद्घाटन से
होए जनता संतुष्ट।
वोट पैसे दारू जाति धर्म,
गोटी व समीकरण-
ये कठिन चुनावी खेल
दें जनता को
कुंभकर्णीय निंद्रा में ठेल।
सच कह गए बड़े बुज़ुर्ग -
जो सोवत है सो खोवत है,
जो जागत है सो पावत है।

  • Author: uglykavi (Offline Offline)
  • Published: January 13th, 2024 03:29
  • Comment from author about the poem: I have tried to address the election games in Indian politics. Noting the devastation and issues like Extreme advertising, Power tussles, nepotism, match fixing, politics of religion, destruction of environment, pandemic, apathy and frustration.
  • Category: Sociopolitical
  • Views: 2
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Comments +

Comments1

  • Doggerel Dave

    If you are capable of delivering your commentary in English, why not the poem? the script , I concede is pretty, but totally meaningless to, I'd suggest, the majority of the contributors/readers on this site...
    You put your trust in Google translate?

    • uglykavi

      Thank you for your comment.

      1. It is some effort to translate and I am not sure if I can do a good translation with the same impact as the original language poem. I will try.
      2. I don't put trust in Google Translate. It may be able to give an idea though probably rudimentary.
      3. Others have commented so to me before. I will try to translate to the best of my skill.

      • Doggerel Dave

        Good for you. Thanks for responding to my query in the same spirit I intended.



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