है नमन तुम्हें यै पवित्र मिट्टी,
मन से लिपटी तन से लिपटी,,
नमन तुम्हें ये पवित्र मिट्टी।
लहक रहे सरसों के फूल,
महक रही है उड़ती धूल।
महक रहे वाटिका और वन,
महक रही तरुवर की छाया।।
भौंरा कुछ संदेशा लाया,
चिड़िया उड़ती गीत सुनाती,,
तितली हमको बात बताती,
घर के अंदर बाहर उड़ती।
नमन तुम्हें आए पवित्र मिट्टी।।
घर के बरेंड़ पे कौवा बोले,
भंवरा भ्रमण कर इधर,,
लगता कोई आने वाला है।
मेरे दिल को भाने वाला है,
है ऐसा अतिथि कहां जग में,,
जिसे रास ना आए तरुवर छाया।।
भ्रमण कर रहे,भंवरे तितली गाती,
फिर कोयल ने गीत सुनाया,,
लगता कोई आने वाला है,
अतिथि का स्वागत गांव में।
करती पैरों से लिपटी,
नमन तुम्हें ये पवित्र मिट्टी।।
फूल मनोहर सरसों के,
लगे लुभावना खेतों में,,
ओस की चादर ओढ़ फिरती,
ॠतु बसंत की झिलमिल रातें।
तनिक सी सर्दी, तनिक सी गर्मी,
दोनों साथ हैं आते जाते,,
घास फूस के छप्पर भीतर,
एक छोटा दीपक जलता है।
कंधे जुआठ बैलों के पीछे,
एक बूढ़ा चला जाता है,,
मध्यिम हवा से हिल रही झोपड़ी।
लगता है बरखा बरसेगी,
चारों तरफ लुभावना मौसम,,
सर हिलाती है झोपड़ी,
मुस्कुराती गेहूं की फैसले।
तितलियां सरसों से लिपटी,
नमन तुम्हें यै उड़ती मिट्टी,,
नमन तुम्हें यै पवित्र मिट्टी।।
~विवेक शाश्वत
- Author: Vivek saswat shukla (Pseudonym) ( Offline)
- Published: March 26th, 2024 04:16
- Category: Unclassified
- Views: 1
Comments1
Very beautiful
Thanks dear sister 🙏🙏
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