फंस रही हर हर एक मन की बात में , उलझ रही हूं अपने आप में, खींची चली जा रही हूं अनकही,अनसुनी दिमाग की चाल है,वक्त जाया हो रहा है, पर जानकार भी ये बात मन खुश हो रहा है, बेशरम सा मन , दिमाग़ को दोष देता है,पर खुद का सुख कोन ही देखता है, जानता है सूख की क़ीमत क्या है ।फिर भी बेवजह भावनाओ मे बहता जा रहा है। भविष्य की चिंता है,फिर भी उलज रहा है, अनकही बातो मे, जानता है,जो उसे हुआ है वो कोई आम सी बात तो नही, तू समझदार है, पर समझता क्यों नही, खोफ पैदा कर अपने बितर पूरा, नही तो रह जाएगा महत्वकांशाओ के साथ अदूरा ।
- Author: Dr sr ( Offline)
- Published: September 16th, 2024 09:18
- Category: Unclassified
- Views: 11
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