हम चार – एक अनमोल रिश्ता

[email protected]

हम चार – एक अनमोल रिश्ता

हम चार, जो थे अलग-अलग राहों के,
ना जाने कब बन गए एक-दूजे के साए में।
बातें हुईं, हंसी बिखरी,
दोस्ती की एक नई कहानी निकली।

एक थी मेरी अपनी, मेरी tea partner पुरानी,
हर मुश्किल में देती थी वो साथ निभाने की निशानी।
सबसे सरल, सबसे सादी,
हर किसी की फिक्र, सबसे जिम्मेदारी वाली।
अगर कभी हम झगड़ते,
तो ममता से हल्का सा डांटकर सुलझा देती।
घर जैसा अपनापन, हर लम्हा समर्पण,
हमारी Swapnaja Ma’am, दिल की सबसे पास।

दूसरी थी सबसे समझदार,
बिना मतलब की बातों से थी इनकार।
Physics में डूबी, किताबों की प्यासी,
हर उलझन का हल था इनका खासा।
Mind से active, ideas की खान,
हमारी Jibi Ma’am, ज्ञान की पहचान।

तीसरी थी सबसे मस्तमौला,
ज़िंदगी को खुलकर जीने वाली भोली-भाली।
बात-बात पर acting, हर मोमेंट में fun,
सभी टेंशनों को मस्ती में बदलने का हुनर।
हर मुश्किल को हंसी में उड़ाने वाली,
हमारी Neetu Ma’am, परवचन बाबा हमारी!

और मैं थी उनमें सबसे अलबेली,
छोटी-छोटी बातों पर टेंशन लेने वाली।
कभी हंसी, कभी रोना,
पर दोस्तों के बिना अधूरा था मेरा कोना।

फिर एक दिन dance ने रचाई जादू,
Jibi Ma’am को भी खींच लिया संग,
धूम मचा दी उन्होंने जब थिरकी,
देखते रह गए सब, हंसी में झिलमिल की।

धीरे-धीरे बढ़ी हमारी बातें,
Birthday surprises और नई सौगातें।
Jibi Ma’am को भी बना दिया मस्त,
अब हमारी मस्ती में आ गई नई रस।

हर दिन नया था, हर पल खास,
हम चार के बिना अधूरा था हर एहसास।
कभी बिना मिले रह ना पाते,
तो कभी मिलकर कुछ नया रचाते।

ऐसी थी हमारी दोस्ती की मिठास,
हम चार – एक बंधन जो रहे खास

  • Author: [email protected] (Offline Offline)
  • Published: February 26th, 2025 00:29
  • Category: Unclassified
  • Views: 8
Get a free collection of Classic Poetry ↓

Receive the ebook in seconds 50 poems from 50 different authors




To be able to comment and rate this poem, you must be registered. Register here or if you are already registered, login here.