कुछ अब ताज़े गुल खिलते देख रहा हूँ

Anmol Sinha

 

कुछ अब ताज़े गुल खिलते देख रहा हूँ

ख़ामोशी से तुझको बदलते देख रहा हूँ

 

कलियाँ सी खिलती देखीं थीं जिन होठों पर

अब ज़हर ही उनको उगलते देख रहा हूँ

 

तब जिनसे हम दूरी रखते थे बनाए

तुमको यहां में वहीं ढलते देख रहा हूँ

 

पलकों पे सजा रखे थे कुछ ख़्वाब अधूरे

अब उन्ही से खुद को बिछड़ते देख रहा हूँ

 

जिनको मैं दफन कर रखा था सीने में अपने

उन ख्वाबों को पलकों पे पलते देख रहा हूँ

 

जिनसे कभी कतराते मैं देखा किया था

तुमको उसी राह मैं चलते देख रहा हूँ

 

जो धड़कता था पहले तेरा नाम ले लेकर

अब उस दिल को मैं संभलते देख रहा हूँ

 

नए से कुछ ज़ख्म उभरने लगने लगे हैं

अब ज़ख्म पुराने भरते देख रहा हूँ

 

जिन रिश्तों से रौशन थे मेरे घर की हर एक शय

अब हाथों से उनको निकलते देख रहा हूँ

 

तब ज़्यादा तपिश भी रिश्ते की ठीक नहीं थी

अब बर्फ मैं इनकी पिघलते देख रहा हूं

 

मेरे ही ख्वाब से रोशन थी जो नज़रें

क्यों उनमे खुद को खलते देख रहा हूँ

अनमोल

  • Author: Anmol (Pseudonym) (Online Online)
  • Published: September 17th, 2025 06:02
  • Category: Love
  • Views: 1
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