मेरे ज़हन में एक बात यूं ही कौन्द रही है
वो क्या बात है जो जज़्बात मेरे रौंद रही है
न जाने ये हालात हम किस्से बयां करें
आख़िर कैसे अपना हाल हम अयाँ करें
क्या तुम समझ पाओगी अगर तुमसे बोल दूं
फिर सोचता हूं बात ऐसे कैसे खोल दूं
पहले समझ तो लूं क्या कहना है मुझे
तुझसे बिछड़ के दूर नहीं रहना है मुझे
जो बात कहनी है उसे पहले सजा तो लूं
मैं तुमको अपने पास पहले बुला तो लूं
फिर बातों ही बातों में कह दूंगा सारी बात
गुज़ारी मैने तेरे बिन कैसे तमाम रात
शायद समझ जाओगी जो कहना है मुझे
तुझसे बिछड़ के दूर नहीं रहना है मुझे
-अनमोल
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Author:
Anmol (Pseudonym) (
Offline) - Published: December 26th, 2025 06:46
- Category: Unclassified
- Views: 3

Offline)
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