नारी, धर्म व अधिकार

uglykavi



नारी, धर्म व अधिकार -
करिये इन पर विचार।
जैसे बेकार खट्टे अचार,
वैसे समाज के विकार।
नारी, धर्म व अधिकार -
जरूरी है मंथन, सबको अभिनंदन।
ईश्वर कहाँ है?
ईश्वर सर्वत्र है।
मंदिर में है,
मस्जिद में है,
मकबरे में भी है।
अतः मकबरे व मस्जिद का
पुनर्निर्माण जरूरी है।
सुनने में आया है -
हिन्दू खतरे में है
और मौत के करीब है।
कवि चन्द्रेश कहते हैं -
सुन लो दुनियावालों,
हिन्दू जाग गया है
और शौच कर रहा है।
कहीं गाय पवित्र है,
कहीं सुअर निषेध है।
आधी दुनिया खाती है,
पर धर्म के आगे
धार्मिक की मति मारी है।
धर्म हो न हो,
नारी पर सब भारी हैं।
कपड़े नहीं तो
नग्नता उसकी पहचान है।
कपड़ों व चिह्नों पर
धर्म भारी है।
मानो न मानो -
बुर्का व घूंघट
पर्यायवाची हैं।
मूल अधिकारों पर भी
धर्म भारी है।
कहीं स्त्री भ्रूण का
गर्भपात जरूरी है।
कहीं गर्भपात ही अपराध है।
बच्चा लाना न लाना -
निजी मामला नहीं,
पारिवारिक भी नहीं,
पूरे विश्व में चर्चा का विषय है।
सच है -
वंशज लानेवाली पर
दुनिया भारी है।

  • Author: uglykavi (Offline Offline)
  • Published: September 22nd, 2022 08:58
  • Comment from author about the poem: India is churning with the current politics and religious fanaticism. If I hurt some sentiments with this poem, please understand it is my viewpoint which I express. Although I have targeted Hinduism but many other religions have and do act the same way at times as I see it.
  • Category: Sociopolitical
  • Views: 18
Get a free collection of Classic Poetry ↓

Receive the ebook in seconds 50 poems from 50 different authors




To be able to comment and rate this poem, you must be registered. Register here or if you are already registered, login here.