जानेवाले की व्यथा

uglykavi

व्यक्ति आय अथवा पढ़ाई
के लिए विदेश जाता है।
अपना देश, अपने लोग,
अपना अतीत, अपना व्यवसाय,
अपनी संस्कृति -
एक अध्याय छोड़ जाता है।
सच यही है कि -
अपना सर्वस्व छोड़ जाता है।
मन से नहीं जाता है।
बेमन ही जाता है।
मजबूरी ले जाती है।
दूसरे देश में वह
विदेशी होता है।
शून्य से शुरु करता है।
अथक परिश्रम करता है।
घुलने मिलने की -
कोशिश करता है।
पर एक हिसाब से -
विदेशी ही रहता है।
लम्बा समय अतीत
नहीं मिटता है।
बचपन अपनापन
नहीं छूटता है।
विदेश जानेवाला
दूसरे देश में
विदेशी होता है।
अगर उसके देश के लोग
उसे परदेशी मानें -
तो वो किस देश का रह जाएगा?

  • Author: uglykavi (Offline Offline)
  • Published: September 29th, 2022 21:06
  • Comment from author about the poem: Most move out of their place when out of options!
  • Category: Reflection
  • Views: 9
  • Users favorite of this poem: Alan R
Get a free collection of Classic Poetry ↓

Receive the ebook in seconds 50 poems from 50 different authors




To be able to comment and rate this poem, you must be registered. Register here or if you are already registered, login here.