ओ माँ! तुम्हारे जैसा न कोई दूसरा
तुम्ही हो ऐसी जिसको है देखा,
निःस्वार्थ सेवा तुम्ही को करते देखा,
तुम्ही को हुँ अपनी जान मानता,
तुमको दुःखी मै नही देख सकता,
ओ माँ ! तुम्हारे जैसा न कोई दूसरा
अगर तुम न होती तो मै भी न होता
तुम्ही हो जरिया मेरे आने का
तुम्हारे बिना ये संभव न होता
तुम न होती मै न पहुँचता तक यहाँ
ओ माँ! तुम्हारे जैसा न कोई दूसरा
भले ही हो कितनी भी तंगी पैसे की
तुमने न महसूस होने दी मुझे कमी
जो माँगा वो तुमने लाके दिया
न कभी कहा की अभी रुक जा
ओ माँ! तुम्हारे जैसा न कोई दूसरा
बेवकूफ है वो जो माँ की कद्र न जानते
नही पता उनको की माँ न होती तो वो भी न होते
जब चली जायेगी वो छोड़ के इस तरह
तब आयेगा होश मैने गलत था किया
ओ माँ! तुम्हारे जैसा न कोई दूसरा
बिता दी सारी जिंदगी संभालने परिवार में
भूल गयी सपने अपने बीच बाज़ार में
निःस्वार्थ सेवा करते है देखा
तुम्ही हो ऐसी जिसको है देखा
ओ माँ! तुम्हारे जैसा न कोई दूसरा।।
- Author: Sarthak shukla ( Offline)
- Published: May 21st, 2024 01:28
- Category: Unclassified
- Views: 21
- Users favorite of this poem: Sarthak shukla
Comments3
This poem is dedicated to the mother who give us service without any sallery
Ya actually you are right this poem is amazing for our mother's work that she do whole day
The greatest among you shall be your servant.
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