ख्वाब बेचे घर चलाने को
चीज़ अच्छी दिल, जलाने को
अब यहां तो घर बचा नहीं
फिर क्या रह गया बचाने को
मोल आंसू का कुछ नहीं
खून रह गया बहाने को
दिल नहीं है लगता शहर में
हम तो आए हैं कमाने को
खुद से रूठे हम यहां हैं पर
कौन हमको है मनाने को
तेरी यादें, तेरी बातें हैं
और क्या है दिल लगाने को
जिनसे कोई नहीं मरासिम अब
वो भी आए हक जताने को
अनमोल
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Author:
Anmol (Pseudonym) (
Offline)
- Published: September 27th, 2025 05:44
- Category: Unclassified
- Views: 13
- Users favorite of this poem: Ajay Sinha, Priya Tomar
Comments2
बेहद उम्दा
Behatarin !
धन्यवाद
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